डॉ. बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर ने 31 मई,
1936 को दादर (बम्बई ) में "धर्म परिवर्तन क्यों? " विषय पर बोलते हुए
अपने विस्तृत भाषण में कहा था , " मैं स्पष्ट शब्दों में कहना चाहता हूँ कि
मनुष्य धर्म के लिए नहीं बल्कि धर्म मनुष्य के लिए है. अगर मनुष्यता की
प्राप्ति करनी है तो धर्म परिवर्तन करो. समानता और सम्मान चाहिए तो धर्म
परिवर्तन करो. स्वतंत्रता से जीविका उपार्जन करना चाहते हो धर्म परिवर्तन
करो. अपने परिवार और कौम को सुखी बनाना चाहते हो तो धर्म परिवर्तन करो."
इसी तरह 14 अक्टूबर, 1956 को धर्म परिवर्तन करने के बाद बाबा साहेब ने कहा
था, "आज मेरा नया जन्म हुआ है."
आइए अब देखा जाये कि बाबा साहेब ने धर्म परिवर्तन के जिन उद्देश्यों और
संभावनाओं का ज़िकर किया था, उन की पूर्ती किस हद तक हुयी है और हो रही है.
सब से पहले यह देखना उचित होगा कि बौद्ध धर्म परिवर्तन कि गति कैसी है.
सन 2011 की जन गणना के अनुसार भारत में बौद्धों की जनसँख्या लगभग 84 लाख है
जो कि कुल जन संख्या का लगभग 0.7 प्रतिशत है. इस में परम्परागत बौद्धों की
जन संख्या बहुत ही कम है और यह हिन्दू दलितों में से धर्म परिवर्तन करके
बने नव बौद्ध ही हैं. इस में सब से अधिक बौद्ध महाराष्ट्र में 58.38 लाख,
कर्नाटक में 4.00 लाख और उत्तर प्रदेश में 3.02 लाख हैं. सन 2001 से सन
2011 की अवधि में बौद्धों की जनसँख्या में 6.1% की वृद्धि हुयी है.
अब
अगर नव बौद्धों में आये गुणात्मक परिवर्तन की तुलना हिदू दलितों से की
जाये तो यह सिद्ध होता है कि नवबौद्ध हिन्दू दलितों से सभी क्षेत्रों में
बहुत आगे बढ़ गए हैं जिस से बाबा साहेब के धर्म परिवर्तन के उद्देश्यों की
पूर्ती होने की पुष्टि होती है. अगर सन 2001 की जन गणना से प्राप्त आंकड़ों
के आधार पर नव बौद्धों की तुलना हिन्दू दलितों से की जाये तो नव बौद्ध
निम्नलिखित क्षेत्रो में हिन्दू दलितों से बहुत आगे पाए जाते हैं:-
1.
लिंग अनुपात :- नव बौद्धों में स्त्रियों और पुरुषों का अनुपात 953 प्रति
हज़ार है जबकि हिन्दू दलितों में यह अनुपात केवल 936 ही है. इस से यह सिद्ध
होता है कि नव बौद्धों में महिलायों की स्थिति हिन्दू दलितों से बहुत अच्छी
है. नव बौद्धों में महिलायों का उच्च अनुपात बौद्ध धर्म में महिलायों के
समानता के दर्जे के अनुसार ही है जबकि हिन्दू दलितों में महिलायों का
अनुपात हिन्दू धर्म में महिलायों के निम्न दर्जे के अनुसार है. नव बौद्धों
में महिलायों का यह अनुपात हिन्दुओं के 931, मुसलमानों के 936, सिक्खों के
893 और जैनियों के 940 से भी अधिक है.
2. बच्चों (0-6 वर्ष तक ) का
लिंग अनुपात:- उपरोक्त जन गणना के अनुसार नव बौद्धों में 0-6 वर्ष तक के
बच्चों में लड़कियों और लड़कों का लिंग अनुपात 942 है जब कि हिन्दू दलितों
में यह अनुपात 935 है. यहाँ भी लड़के और लड़कियों का लिंग अनुपात धर्म में
उन के स्थान के अनुसार ही है. नव बौद्धों में यह अनुपात हिन्दुओं के 931,
मुसलामानों के 936, सिक्खों के 893 और जैनियों के 940 से भी ऊँचा है.
3.
शिक्षा दर :- नव बौद्धों में शिक्षा दर 72.7% है जबकि हिन्दू दलितों में
यह दर सिर्फ 54.7% है. नव बौद्धों का शिक्षा दर हिन्दुओं के 65.1% ,
मुसलमानों के 59.1% और सिक्खों के 69.7% से भी अधिक है. इस से स्पष्ट तौर
से यह सिद्ध होता है कि बौद्ध धर्म में ज्ञान और शिक्षा को अधिक महत्त्व
देने के कारण ही नव बौद्धों ने शिक्षा के क्षेत्र में काफी तरक्की की है
जो कि हिन्दू दलितों कि अपेक्षा बहुत अधिक है.
4. महिलायों का
शिक्षा दर:- नव बौद्धों में महिलायों का शिक्षा दर 61.7% है जब कि हिन्दू
दलितों में यह दर केवल 54.7% ही है. नव बौद्धों में महिलायों का शिक्षा
दर हिन्दू महिलायों के 52.3%, और मुसलमानों के 50.1% से भी अधिक है. इस से
यह सिद्ध होता है कि नव बौद्धों में महिलायों की शिक्षा की ओर अधिक ध्यान
दिया जाता है.
5. कार्य सहभागिता दर (नियमित रोज़गार):- नव बौद्धों
में कार्य सहभागिता दर 40.6% है जब कि हिन्दू दलितों में यह दर 40.4% है.
नव बौद्धों का कार्य सहभागिता दर हिन्दुओं के 40.4%, मुसलमानों के
31.3%, ईसाईयों के 39.7%, सिखों के 37.7% और जैनियों के 32.7% से भी
अधिक है. इस से यह सिद्ध होता है कि नव बौद्ध बाकी सभी वर्गों के मुकाबले
में नियमित नौकरी करने वालों की श्रेणी में सब से आगे हैं जो कि उनकी उच्च
शिक्षा दर के कारण ही संभव हो सका है. इस कारण वे हिन्दू दलितों से आर्थिक
तौर पर भी अधिक संपन्न हैं.
उपरोक्त तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट है
कि नव बौद्धों में लिंग अनुपात, शिक्षा दर, महिलायों का शिक्षा दर और
कार्य सहभागिता की दर न केवल हिन्दू दलितों बल्कि हिन्दुओं, मुसलमानों,
सिक्खों और जैनियों से भी आगे है. इस का मुख्य कारण उन का धर्म परिवर्तन
करके मानसिक गुलामी से मुक्त हो कर प्रगतिशील होना ही है.
इसके
अतिरिक्त अलग अलग शोधकर्ताओं द्वारा किये गए अध्ययनों में यह पाया गया है
कि दलितों के जिन जिन परिवारों और उप जातियों ने डॉ. आंबेडकर और बौद्ध
धर्म को अपनाया है उन्होंने हिन्दू दलितों की अपेक्षा अधिक तरक्की की है.
उन्होंने ने पुराने गंदे पेशे छोड़ कर नए साफ सुथरे पेशे अपनाये हैं. उन में
शिक्षा की ओर अधिक झुकाव पैदा हुआ है. वे भाग्यवाद से मुक्त हो कर अपने
पैरों पर खड़े हो गए हैं. वे जातिगत हीन भावना से मुक्त हो कर अधिक
स्वाभिमानी हो गए हैं. वे धर्म के नाम पर होने वाले आर्थिक शोषण से भी
मुक्त हुए हैं और उन्होंने अपनी आर्थिक हालत सुधारी है. उनकी महिलायों और
बच्चों की हालत हिन्दू दलितों से बहुत अच्छी है.
उपरोक्त संक्षिप्त
विवेचन से यह सिद्ध होता है कि बौद्ध धर्म ही वास्तव में दलितों के कल्याण
और मुक्ति का सही मार्ग है. नव बौद्धों ने थोड़े से समय में हिन्दू दलितों
के मुकाबले में बहुत तरक्की की है, उन की नव बौद्धों के रूप में एक नयी
पहिचान बनी है. वे पहिले की अपेक्षा अधिक स्वाभिमानी और प्रगतिशील बने
हैं. उनका दुनिया और धर्म के बारे में नजरिया अधिक तार्किक और
विज्ञानवादी बना है. नव बौद्धों में धर्म परिवर्तन के माध्यम से आये
परिवर्तन और उन द्वारा की गयी प्रगति से हिन्दू दलितों को प्रेरणा लेनी
चाहिए. उनको हिन्दू धर्म की मानसिक गुलामी से मुक्त हो कर नव बौद्धों की
तरह आगे बढ़ना चाहिए. वे एक नयी पहिचान प्राप्त कर जातपात के नरक से बाहर
निकल कर समानता और स्वतंत्रता प्राप्त कर सकते हैं. इस के साथ ही नव
बौद्धों को भी अच्छे बौद्ध बन कर हिन्दू दलितों के सामने अच्छी उदाहरण पेश
करनी चाहिए ताकि बाबा साहेब का भारत को बौद्धमय बनाने का सपना जल्दी से
जल्दी साकार हो सके.