भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर लिखने का ही बहोत मन करता रेहता है । आज थोडा समय मिल गया तो सोचा थोडा सा क्युं ना लिखा जाय, जो हमारे सामाजिक नागरिकता के खिलाफ सालो से नींव कि तरह खूंपा हुआ है । हमारी संस्कृति कितनी भी प्राचिन और सभ्यतामय क्यु न हो पर ये ही हमारी सारी समस्या कि एक झड़ भी है।
सालो से देश का भव्य इतिहास पढता आया हु, उसमे देश को सोने कि चिडीया बतायी जाती है । साथ मे एक ये भी बताया गया है कि ये देश मे दिमक कि तरह जाति व्यवस्था भी फैली हुई है, जो इस देश कि गरीबी और पिछडेपन का सहज कारण है । जिसने सालो तक हमारे पूर्वजो को कमजोर करने का और विकास को रूंधने का घिनौना कार्य किया है ।
हम सब देवता और भगवान मे ज्यादा यकिन करते है, बहुत पूजा और धर्मांध काम करते रहते है , तो भी हम सबके गुलाम बनते जा रहे है, जितना भरोसा हम पत्थर कि मूर्तियो पर करते है उतना शायद हम इन्सानियत के नाम पर करते तो आज हमारे मानव समाज का स्तर इतना नीचे नही गीर पाता । रोज धर्म के नाम के दंगल होते है और हजारो लोग उसके शिकार बनते जा रहे है ।
ये कितने दिन तक चलता रहेगा, हम मारते रहेंगे और मासूमियतस, इन्सानियत मरती रहेगी । जो धर्म समाज मे इन्सानियत का संदेश देने के लिये अस्तित्व मे आया था वो ही धर्म आज इन्सानियत के लिये एक खतरा बनता जा रहा है । आखिर कब तक चलता रहागा ये सिलसिला ? धर्म वो नही कि किसी पर दबाव डाले, धर्म वो नही जो किसी पर रश्म और रीवाज बनाये रखे । धर्म वो नही जो इन्सानियत को इन्सानियत से खतरा बनाये, दो इन्सानो के बीच दिवार बन खड़ा रहे ।
धर्म का आधार प्रणाली से होना चाहीये, धर्म का आधार संस्कृति से होना चाहीये जो हमे जिने का नया तरीका शिखाये । बंधूता बनाये और हमे अपनी मरजी से रहने का एक मुक्त समाज पैदा करे । किसी भी नियंत्रण और अंकुश को बढावा दे वो धर्म नही एक मुर्खो का सामाजिक समृह है जो बदलते समाज मे रहना चाहते है पर दरींदाई छोडना नही चाहते । हमे वैश्विक एकता और समभाव का दर्शन कराये ऐसा नव निर्मित समाज बनाना है । चळो चले क्रांति की और छलो कदम रखे इन्सानियत कि और । हमे कोई धर्म या जाति से कुछ लेना देना नही सिर्फ मानवता के मूल्यो का जतन करना है ।
सालो से देश का भव्य इतिहास पढता आया हु, उसमे देश को सोने कि चिडीया बतायी जाती है । साथ मे एक ये भी बताया गया है कि ये देश मे दिमक कि तरह जाति व्यवस्था भी फैली हुई है, जो इस देश कि गरीबी और पिछडेपन का सहज कारण है । जिसने सालो तक हमारे पूर्वजो को कमजोर करने का और विकास को रूंधने का घिनौना कार्य किया है ।
हम सब देवता और भगवान मे ज्यादा यकिन करते है, बहुत पूजा और धर्मांध काम करते रहते है , तो भी हम सबके गुलाम बनते जा रहे है, जितना भरोसा हम पत्थर कि मूर्तियो पर करते है उतना शायद हम इन्सानियत के नाम पर करते तो आज हमारे मानव समाज का स्तर इतना नीचे नही गीर पाता । रोज धर्म के नाम के दंगल होते है और हजारो लोग उसके शिकार बनते जा रहे है ।
ये कितने दिन तक चलता रहेगा, हम मारते रहेंगे और मासूमियतस, इन्सानियत मरती रहेगी । जो धर्म समाज मे इन्सानियत का संदेश देने के लिये अस्तित्व मे आया था वो ही धर्म आज इन्सानियत के लिये एक खतरा बनता जा रहा है । आखिर कब तक चलता रहागा ये सिलसिला ? धर्म वो नही कि किसी पर दबाव डाले, धर्म वो नही जो किसी पर रश्म और रीवाज बनाये रखे । धर्म वो नही जो इन्सानियत को इन्सानियत से खतरा बनाये, दो इन्सानो के बीच दिवार बन खड़ा रहे ।
धर्म का आधार प्रणाली से होना चाहीये, धर्म का आधार संस्कृति से होना चाहीये जो हमे जिने का नया तरीका शिखाये । बंधूता बनाये और हमे अपनी मरजी से रहने का एक मुक्त समाज पैदा करे । किसी भी नियंत्रण और अंकुश को बढावा दे वो धर्म नही एक मुर्खो का सामाजिक समृह है जो बदलते समाज मे रहना चाहते है पर दरींदाई छोडना नही चाहते । हमे वैश्विक एकता और समभाव का दर्शन कराये ऐसा नव निर्मित समाज बनाना है । चळो चले क्रांति की और छलो कदम रखे इन्सानियत कि और । हमे कोई धर्म या जाति से कुछ लेना देना नही सिर्फ मानवता के मूल्यो का जतन करना है ।