Thursday 21 August 2014

हमारा समाज ये धार्मिक विष कब तक पीता रहेगा....

हमारा भारत देश विविधता और सांस्कृतिक वैविध्यता से भरा हुआ है । देश मे हर तरह के लोग अपनी निजी पहचान के साथ जीते है । अपनी संस्कृति,धर्म ,रीतीयो मे बहुत विविधता देखने को मिलती है । हर एक आदमी अपनी अलग पेहचान के साथ जीना चाहता है । हमारे देश के संविधान मे  भी लोगो को समानता और कोई धर्म अपनाने का झिक्र कीया  है ।
आज हमारा देश को प्रगति की राह पर आगे बढाने की जरुरत है तब हमारी युवा संपत्ति को धर्म का अफीन देकर कोमवाद और सांप्रदायिकता फेलायी जा रही है । ये हमारे देश  का युवाओ को गुमराह करने का एक सफल तरीका बन गया है ।कोई ये क्युं नही शिखाता की धर्म हमारे लीये है वो जो कोई भी धर्म क्यु ना हो,हम उसका सम्मान करेंगे ।
जाति - पांति वाद का जिक्र करने वाला ना तो वो धर्म का होता है,ना तो धर्म उसके लिये होता है । सिर्फ सत्ता और गुमराह करके लोगो पर अपना प्रभुत्व कायम बनाये रखने का ही एक मात्र मकसद होता है । ये लोग सभी धर्म और जाति मे मिलते है । वो विष की तरह फैले हुए लोगो ने हमारी वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को नष्ट कर दीया है ।
हमारा धर्म एक है,मानवता और हम उसका ही जिक्र करते है,आज के युवा को सही रास्ता चाहीये जो अपने देश को और ये पुरे समाज को मिलजुलकर आगे बढाये । हमारी आनेवाली पेढीओ को एक स्वस्थ समाज प्रदान करने का अवसर चाहीये ।ये देश के पिडींत और शोशितो पर बहुत हो चुका अत्याचार,अब मौका मिला है तो उसका करे उद्धार ।
हमारे समाज की पिढीयो ने कई आपत्तियां झेलनी पडी है ,वो भी अपने धर्म के कहने वाले फरीस्तो से, तो उस लोगो ने गुलामी की झंझीरो से अब मुक्ति देनी है तो मानवता के राह पर चलकर उन्नती की और बढाने के लिये हमे आपसी गुटबाजी और धार्मिक विष का त्याग करना होगा ।
ये आज की पिढीयो को स्वस्थ शिक्षा प्राप्त नही होती, वो शिक्षा प्राप्त करे और अपनी सामाजिक जिम्मेदारीओ को अदा करे । सामाजिक नेतृत्व प्रदान करके एक उत्तम भारत बनाने का काम मे एकजुट हो जाये ।




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