Sunday 24 August 2014

सामाजिक बदलाव क्युं जरुरी बनता जा रहा है ।

भारत नही बल्की पुरे जगत मे समय के साथ बदलाव आया है । वो बदलाव की वजह कोई भी हो सकती है । यही सामाजिक तौर पर हुए बदलाव की बात करे तो हमारा देश सामाजिक परीवर्तन की संस्कृति से बना हुआ लगता है । दमन और अत्याचार यहां लोगो की मानसिकता मे शिष्टाचार के नाम पर झड़ गया है । पुराने समय की एक झांकी करने से भी पता चलेगा की हमारे पूर्वजो ने  लोगो की मानसिकता को नपूंसक बनाकर सदीयो तक जूल्म गुजारा है ।
समाज मे मुस्लिमो की बढती आबादी और हको की आवाज उठने पर शोर मचाने वाले यही महान हिन्दुं धर्म के वंसजो ने संस्कृति का उत्पिड़न क्या नही कीया ?
दलीत,आदिवासी जातियां और महिलाऔ सदीयो से गुलामी का बोज सेहती आई है , संस्कृति और सभ्यता के नाम पर उसको गुलाम बनाकर उनका उत्पिंडन कीया गया । महिलाओ का शारिरीक शोषण करके उसको दैवी का दरज्जा दीया गया ।
आज हमारा देश स्वतंत्र है ? क्या आप पुरी तरह सम्मान के साथ जी रहे हो । हमे आज भी गोळीयो से मारा जा रहा है । आज भी हमारी बहन - बेटीयों पर बेरहमी बलात्कार हो रहा है । हमे अपने हको के लिये लड़ने के लिये संविधान का सहारा मिला है,पर क्या उसके मुताबिक हमे हमारा हक़ मिलता है । आज तक हम दलित पीछड़पन,शोषित,वंचित जैसी पुरानी भाषा बोल रहे है,जो सालो पुरानी हो चुकी है । यह हमे क्या मिला । ये सब तो पेहले भी हमारे पास था और आज भी है ।
हमे शिक्षा प्राप्त करना ही प्रयाप्त नही, उसके आगे बढ़कर भी कुछ करना है । हमारा समाज जो कई सालो से गुलामी की झंझीरो मे डुबा हुआ है उसे बहार निकालना है । लडना है,झगड़ना है । सामाजिक क्रांति की मिशाल बनना है । ये हम सब युवा पेढ़ी की जिम्मेदारी है ।
हम हिन्दुं,मुस्लिम,जैसे धर्मो,सांप्रदायो दलित,आदीवासी जैसे वर्गो से आगे बढ़कर हमारे समाज की तरक्की करनी होगी, संविधान मे मूल्यो का स्थापन करना होगा । ये देश जब तरक्की की कगार पर खड़ा है तब हम ये पिछड़े और वंचित लोगो के लिये कुछ नही करेंगे तो हमारी आने वाली पींढींयां हमे माफ नही करेगीं ।

No comments:

Post a Comment

thanks for comment... your suggestions are valuable and we try to accept.welcome again.