Tuesday 14 April 2015

आंम्बेडकर एक विरल व्यक्तित्वः क्रांति कि मिशाल

डॉ. भीमराव आंबेडकर भारतवर्ष मे एक ज्योत बनकर आये थे । वो खुद को जलाकर समाज मे समानता कि रोशनी फैलाकर चला गया । उसने पारंपारिक दिवारे तौडकर वंचित समाज और बहिष्कृत भारत के लिये जो किया है, काश, उस समय का कोई भी आदमी करने मे नाकाम था ।
एक सामान्य परीवार मे पैदा हुआ एक विरल व्यक्ति ने अपनी खुद कि प्रतिभा के बल पर सामाजिक, आर्थिक और राजनितिक बदलाव लाने मे अहम् भूमिका निभाई ।
डो. बाबासाहब भीमराव रामजीराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रिल 1891 मे मध्यप्रदेश कि महु लश्करी छावनी मे हुआ था । उस के पिता रामजीराव लश्करी स्कुल मे अध्यापक था और माता भीमाबाई गृहस्थी थे ।
संघर्ष के काल मे सामाजिक अस्पृश्यता का कलंक मिटाकर पिछडे समाज और पददलितो कि उन्नति के लिये उनका जो प्रदान रहा है वो विस्मरणीय है ।
वो समय मे अकेला लडते झझुमते दलितो, महिलाओ और मजदूरो के हीतो कि  हिफाजत उन्हो ने कि है शायद आज के समय मे काश कोई नही कर पाया । हिन्दूं धर्म मे व्यापत् गंदी रीतिनीतिओ से तंगे आकर उन्हो ने धर्म परीवर्तन करने का फैसला किया जो एक क्रांति कि मिशाल माना जाता है।
 आज के दिन उन को फूलो कि माला पहनाने वाले और लंबे चौडे भाषण फैंकने वाले नेता यह नही जानता कि बाबा साहब दलित नही थे, वो एक महा मानव थे । सर्व समाज के हित, समानता और बृहद् भारत के हितो कि हीफाजत के लिये अपना जिवन कुरबान कर दिया था । उनको एक दलित या महादलित बनाकर छोटा करने का हीन कृत्य आज के आंम्बेडकरवादी समुह कर रहे है ।
उनके मिशन को भुलकर अपनी छोटी राजनीतियो मे समाज व्यस्त हो गया है । समाज मे नये तरीके से फैली गंदकी को साफ करने के लिये फिर नया बोधिसत्व आंम्बेडकर का ईन्तजार है।

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